ग्‍लोबलाइजेशन का डरावना चेहरा है कोरोना वायरस, स्पेनिस फ्लू से मारे गए थे 5 करोड़ लोग

ग्‍लोबलाइजेशन का डरावना चेहरा है कोरोना वायरस, स्पेनिस फ्लू से मारे गए थे 5 करोड़ लोग


Coronavirus क्या सिर्फ लाभ और कारोबार के लिए ही दुनियावी एकजुटता होनी चाहिए? क्या किसी संकट से निपटने के लिए इस तरह की एकजुटता की जरूरत नहीं है?

लोकमित्र। Coronavirus: विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सालाना करीब 46 लाख लोग वायु प्रदूषण के चलते मर जाते हैं। इसी तरह सीडीसी यानी सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक हर साल सड़क दुर्घटनाओं के कारण पूरी दुनिया में साढ़े तेरह लाख लोग मारे जाते हैं। इन दो आंकड़ों का उल्लेख यहां इसलिए किया गया है ताकि यह जाना जा सके कि कोरोना वायरस को लेकर दुनिया में जो बदहवासी का आलम है, वह कितना हास्यास्पद है।

दुनिया के 123 देशों में फैल चुका कोरोना वायरस : अगर अब तक के वैश्विक आंकड़ों को देखें तो पिछले डेढ़ महीने में कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में 4,300 लोगों की जान ली है और अब तक यह दुनिया के 123 देशों में फैल चुका है। साथ ही दुनिया में करीब एक लाख चालीस हजार लोग कोरोना से संक्रमित थे। भारत में अब इस वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या 80 के करीब हो गई है और हमारे यहां इससे दो इंसान की मौत भी हो चुकी है।


कोरोना को लेकर दुनिया में बदहवासी का माहौल : सवाल यह है कि क्या इन आंकड़ों को देखते हुए जिस तरह से कोरोना को लेकर दुनिया में बदहवासी का माहौल बनाया गया है, वह कितना जायज है? अगर हर साल तमाम वजहों से असमय मरने वाले लोगों की संख्या देखें तो वह करीब पांच करोड़ से ज्यादा है। इसके बाद भी न तो प्रदूषण के नाम पर दुनिया में एक दिन को भी बदहवासी देखी गई है, न बाढ़, न सूखा, न सड़क दुर्घटनाएं, न बेरोजगारी और न ही मंदी के चलते। जबकि ऐसा नहीं है कि कोरोना के जरिये दुनिया पहली बार किसी महामारी से परिचित हुई है। इतिहास में ऐसी 100 से ज्यादा महामारियां दर्ज हैं, जिनमें लाखों की तादाद में लोग मारे गए हैं।


स्पेनिस फ्लू ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया था : अगर भूमंडलीकरण इतने ही कमजोर आधार पर टिका है, तो फिर इसकी क्या जरूरत है? वर्ष 1918 में स्पेनिस फ्लू ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लिया था और करीब एक साल के भीतर पांच करोड़ लोग मौत की नींद सो गए थे। यह भी दुनिया के 90 फीसद देशों में फैला था। लेकिन तब इतनी भगदड़ नहीं मची थी। सबसे बड़ी बात यह है कि इस बदहवासी को फैलाने में उस देश की सबसे बड़ी भूमिका है, जो अपने को हथियारों के मामले में ही नहीं, दवाओं और मेडिकल सुविधाओं के मामले में भी दुनिया का सबसे ताकतवर देश मानता है। उस देश के सबसे ताकतवर व्यक्ति ने इस बदहवासी को फैलाने में आग में डाले जाने वाले घी की भूमिका निभाई है।

दुनिया की अर्थव्यवस्था को महज 72 घंटों में चौपट : आज इस बीमारी से बचाव के लिए मेल-जोल की प्रक्रिया में हाथ नहीं जोड़ने से लेकर नमस्ते करने के संदर्भ से जोड़ा जा रहा है। बहरहाल यह महज हाथ जोड़कर व्यक्तिगत रूप से बरती गई सजगता भर नहीं है, बल्कि दुनिया को डराने का एक सबसे संवेदनशील तरीका भी है। कोरोना वायरस सिर्फ व्यक्तिगत रूप से मौत के भय का प्रचार प्रसार नहीं कर रहा, बल्कि इसने अपनी गैरजरूरी संवेदनशीलता के चलते न केवल दुनिया की अर्थव्यवस्था को महज 72 घंटों में चौपट कर दिया है, बल्कि करोड़ों लोगों की रोजी-रोटी को खत्म कर दिया है।

सवाल यह है कि आखिर स्थानीय स्तर से लेकर भूमंडलीय स्तर तक इतनी बदहवासी क्यों? क्या इन्हीं दिनों के लिए भूमंडलीय एकता, साझेदारी और मेलमिलाप की कल्पना की गई थी? यह तो बर्बर युग से भी खराब आचरण है कि जरा से संकट आने पर हर देश अपने दड़बे में घुस जाए। अगर संकट के समय सबको अकेले-अकेले ही रहना है, तमाम परेशानियों को अकेले ही सहना है तो फिर शांति के समय के लिए भूमंडलीय एकजुटता मिल-जुलकर रहने की बड़ी बड़ी दुहाइयों का क्या मतलब है? क्या सिर्फ लाभ और कारोबार के लिए ही दुनियावी एकजुटता होनी चाहिए? क्या किसी संकट से निपटने के लिए इस तरह की एकजुटता की जरूरत नहीं है? इन सभी सवालों पर आज गौर करने की आवश्यकता है। - ईआरसी।



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